Loading..

घर के लिए 1kw और 3kw का Solar System


ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम
वह Solar system होता है जहाँ बैकअप के लिए बैटरी का उपयोग किया जाता है। यह सिस्टम उन क्षेत्रों में सबसे अधिक उपयोगी है जहाँ बिजली की उपलब्धता कम होती है या बिजली कटौती बहुत अधिक होती है। ऐसे क्षेत्रों में यह सिस्टम आत्मनिर्भरता प्रदान करता है और बिजली के बिल से भी मुक्ति मिलती है। 1 kW से 3 kW का सोलर सिस्टम अपने घरों, दुकानों या फार्महाउस के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है, जहाँ कुछ सीमित बिजली की आवश्यकता होती है।

ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम में मुख्य रूप से बैटरी, सोलर पैनल, इनवर्टर और चार्ज कंट्रोलर का उपयोग होता है। बैटरी में सौर ऊर्जा को स्टोर किया जाता है, जिससे बाद में जरूरत पड़ने पर बिजली का उपयोग किया जा सके। इनवर्टर, DC पावर को AC में बदलने का काम करता है और चार्ज कंट्रोलर बैटरी को ओवरचार्जिंग से बचाता है। यह सिस्टम मुख्य रूप से उन स्थानों के लिए उपयुक्त है जहाँ बिजली की निर्भरता चुनौतीपूर्ण होती है और बैकअप की जरूरत अधिक होती है।

हम 1 kW और 3 kW के ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम के बारे में जानेंगे, ताकि आपको यह समझने में आसानी हो सके कि यह सिस्टम आपके लिए सही है या नहीं। यहां हम इसके इंस्टॉलेशन की पूरी प्रक्रिया को समझेंगे, जिसमें बैटरी, सोलर पैनल और अन्य Components का चयन शामिल होगा। नीचे दिए गए टेबल्स के माध्यम से हम इसकी विस्तृत जानकारी देखेंगे।



1. बिजली की जरूरतें (लोड कैलकुलेशन)

किसी भी सोलर सिस्टम को लगाने से पहले यह समझना जरूरी है कि आपके पास कौन-कौन से उपकरण (equipment) हैं और वे रोजाना कितनी बिजली की खपत करते हैं। इससे आपको अपने सिस्टम की क्षमता का सही अंदाजा होगा। नीचे एक सामान्य उदाहरण दिया गया है, जिससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि आपको कितने kW का सोलर सिस्टम लगाना चाहिए। यदि आपके पास ज्यादा उपकरण हैं, तो आप भी इसी तरह से अपनी बिजली की जरूरतों का कैलकुलेशन कर सकते हैं:

उपकरण 1 kW Solar System 3 kW Solar System
पंखा 75W, 6 घंटे = 450 Wh 75W x 2, 8 घंटे = 1200 Wh
LED बल्ब 10W x 2, 6 घंटे = 120 Wh 10W x 4, 8 घंटे = 320 Wh
टीवी 80W, 3 घंटे = 240 Wh 80W, 4 घंटे = 320 Wh
मोबाइल चार्जर 10W, 3 घंटे = 30 Wh 10W x 2, 5 घंटे = 100 Wh
इनवर्टर की निष्क्रिय खपत 10W, 24 घंटे = 240 Wh 11W, 24 घंटे = 264 Wh
कूलर नहीं 200W, 6 घंटे = 1200 Wh
कुल दैनिक खपत 1080 Wh (लगभग 1.1 kWh) 3404 Wh (लगभग 3.5 kWh)

2. बैटरी का चयन

बैटरी का चयन करते समय यह देखना होता है कि आपको कितने दिनों का बैकअप चाहिए। हम यहां 2 से 3 दिनों के बैकअप का उदाहरण लेकर चल रहे हैं ताकि मौसम खराब होने या बिजली न आने की स्थिति में भी सिस्टम काम करता रहे।

मापदंड 1 kW Solar System 3 kW Solar System
दैनिक खपत 1100 Wh 3500 Wh
जरूरत (दिनों के लिए) 2 दिन = 2200 Wh 3 दिन = 10,500 Wh
सिस्टम वोल्टेज 12V 48V
एम्पीयर-घंटा (Ah) 183 Ah 219 Ah
अनुशंसित बैटरी 12V, 200 Ah 48V, 200 Ah


3. सोलर पैनल का चयन

Solar panel का चयन करना भी बहुत जरूरी है क्योंकि इसी से हमें बिजली की पूर्ति होती है अगर ये हमारी जरूरत को पूरा नहीं कर पाएगा तो भी बिजली की समस्या बनी रहेगी इसी लिए हर वो equipment जरुरी है कि आपकी जरूरतों को पूरा करे। सोलर पैनल का चयन करने के लिए यह भी समझना ज़रूरी है कि आपके जो area है उसमें प्रभावी धूप यानी (Effective Sunlight Hours) कितने घंटे मिलती है। इससे यह तय होता है कि आपको कितने वॉट का सोलर पैनल लगाना चाहिए।

प्रभावी धूप (Effective Sunlight Hours) क्या है?

  • प्रभावी धूप का मतलब ये वो समय होता है जब सूर्य से मिलने वाली किरणें सीधी और प्रबल होती हैं, जिससे पैनल से हमें अधिकतम ऊर्जा मिलती है।
  • आमतौर पर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक की धूप को प्रभावी माना जाता है जिस से हम ज्यादा energy मिलती है।
  • यह समय और तीव्रता मौसम, स्थान और साल के मौसमों पर भी बहुत निर्भर करता है।
  • भारत में अधिकांश स्थानों पर प्रभावी धूप का अगर हम एक average  समझे तो यह लगभग 4 से 6 घंटे प्रतिदिन होता है।

उदाहरण से समझते है और थोड़ा:

मान लीजिए, आपके area जहां आप ये सोलर पैनल लगाना चाहते है तो प्रतिदिन 5 घंटे प्रभावी धूप मिलती है और आपकी दैनिक बिजली की जो जरूरत है वो है 3000 Wh (वॉट-घंटे)।

पैनल क्षमता का निर्धारण कैसे करें:

आपकी दैनिक electricity की आवश्यकता (Wh) ÷ प्रभावी धूप घंटे (hours) = आपको कुल पैनल की जरूरत होगी (W)

3000 Wh ÷ 5 घंटे = 600 W (के पैनल की आपको जरूरत होगी)

पैनल का चयन:

  • अगर आप 300W का एक पैनल लगाते हैं, तो आपको 2 पैनल की जरूरत होगी जिस से 2*300(W) = 600 W की पूर्ति करेगा जो आपकी जरूरत से थोड़ा कम होगा क्यूं कि सुबह और शाम को इससे थोड़ा कम electricity मिलेगा।
  • यदि आप 400W का पैनल है, तो 2 पैनल से काम हो जाएगा जहां आपको कुल 800W electricity मिलेगी जो पर्याप्त रहेगी।
  • भविष्य में लोड बढ़ाने का प्लान है, तो अतिरिक्त पैनल लगाने पर विचार करे के चले।

प्रभावी धूप घंटे का आकलन कैसे करें?

  • Solar Maps: भारत सरकार के MNRE (Ministry of New and Renewable Energy) द्वारा प्रदान किए गए सोलर मैप्स देख सकते हैं यह भी आपको लगभग आपके area का सटीक आंकलन बताएगा।
  • ऑनलाइन टूल्स: Solar Energy Calculators जैसे PVWatts, Global Solar Atlas आदि का उपयोग कर सकते हैं जहां आपको सटीक data मिलकता है।
  • स्थानीय मौसम विभाग: अपने क्षेत्र के मौसम विभाग से भी आप ये जानकारी ले सकते हैं।

ध्यान देने योग्य बातें:

  • मॉनसून के समय प्रभावी धूप कम हो जाती है, इसलिए सुरक्षा मार्जिन रखना चाहिए।
  • सर्दियों में धूप की तीव्रता कम होती है, इसलिए पैनल की क्षमता का सही चयन करना जरूरी है।
  • यदि स्थान पर छाया ज्यादा होती है, तो पैनल को छत पर या ऊंचाई पर लगाएं, जहां छाया का प्रभाव न हो।

सोलर पैनल की सही क्षमता का चयन आपके क्षेत्र की प्रभावी धूप, आपके बिजली के लोड और भविष्य की जरूरतों पर निर्भर करता है। सही गणना और जानकारी से आप अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त सोलर सिस्टम स्थापित कर सकते हैं।


अब यहां हम समझेंगे कौन सा और कितने पैनल की जरूरत होगी।

मापदंड 1 kW Solar System 3 kW Solar System
सौर ऊर्जा के प्रभावी घंटे 4 घंटे 4 घंटे
पैनल की आवश्यकता 275 वाट 2625 वाट
पैनल का चयन 300W मोनोक्रिस्टलाइन 415W के 6 पैनल




4. इनवर्टर का चयन

इनवर्टर का चयन सोलर सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह सोलर पैनल से प्राप्त DC (Direct Current) पावर को AC (Alternating Current) में बदलने का काम करता है, जिससे आपके घर के उपकरण आसानी से चल सकें। इनवर्टर का चयन करते समय बैटरी और लोड की आवश्यकता का ध्यान रखना होता है। इसके साथ ही यह भी देखना होता है कि इनवर्टर में चार्ज कंट्रोलर (MPPT या PWM) है या नहीं, क्योंकि इससे सोलर पैनल की क्षमता को अधिकतम किया जा सकता है या बाद में आप इसमें और भी सोलर पैनल जोड़ सकते हैं।

MPPT (Maximum Power Point Tracking) तकनीक चार्ज कंट्रोलर की सबसे उन्नत तकनीक है, जो सोलर पैनल से अधिकतम पावर निकालने में मदद करती है। यह विशेष रूप से उन जगहों के लिए उपयोगी होती है, जहाँ धूप की स्थिति लगातार बदलती रहती है।

मापदंड 1 kW Solar System 3 kW Solar System
इनवर्टर Microtek, Luminous


Victron MultiPlus, Microtek
चार्ज कंट्रोलर MPPT 12V, 20A MPPT 48V, 60A
इनवर्टर क्षमता 1000 वाट 3000 वाट
आउटपुट वेवफॉर्म Pure Sine Wave Pure Sine Wave
अनुशंसित ब्रांड Microtek, Luminous Victron, Growatt

Pure Sine Wave इनवर्टर बेहतर होता है क्योंकि यह उपकरणों को सुरक्षित तरीके से और बिना किसी रुकावट के चलाने में सक्षम होता है। यह खासकर संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए जरूरी होता है, जैसे - LED टीवी, कंप्यूटर आदि। इसलिए, सही इनवर्टर का चयन आपके पूरे सिस्टम की स्थिरता और सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

5. सोलर सिस्टम की मेंटेनेंस

ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम को सही तरीके से चलाने के लिए नियमित मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है। समय-समय पर मेंटेनेंस करने से सिस्टम की लाइफ बढ़ती है और इसकी एफिशिएंसी भी बेहतर रहती है। मेंटेनेंस के दौरान निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • सोलर पैनल की नियमित सफाई - धूल, मिट्टी और पत्तियों को साफ करें जिससे पावर जनरेशन प्रभावित न हो।
  • बैटरी की देखभाल - बैटरी टर्मिनल्स की जाँच करें, पानी के स्तर को नियंत्रित रखें और समय-समय पर बैटरी को फुल चार्ज करें।
  • इनवर्टर की जाँच - लूज कनेक्शन और वायरिंग को समय-समय पर चेक करें।
  • चार्ज कंट्रोलर की जाँच - इसके डिस्प्ले पैनल पर आने वाले एरर कोड्स को समझें और सही समय पर एक्शन लें।

6. ऑफ-ग्रिड और ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम में अंतर

ऑफ-ग्रिड और ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम में निम्नलिखित अंतर होते हैं:

मापदंड ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम
बिजली का स्रोत बैटरी बैकअप सीधा ग्रिड से जुड़ा
लागत ज्यादा (बैटरी की वजह से) कम
बिजली कटौती में उपयोग संपूर्ण बैकअप बैकअप नहीं (Net Metering में)
नेट मीटरिंग नहीं हाँ
अनुशंसित स्थान दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्र शहरी और औद्योगिक क्षेत्र

7. सोलर सिस्टम लगाने से पहले ध्यान रखने योग्य बातें

  • दैनिक बिजली की आवश्यकता का सही से कैलकुलेशन करें।
  • अपने बजट के अनुसार पैनल, बैटरी और इनवर्टर का चुनाव करें।
  • छत की स्थिति और उपलब्ध जगह का मूल्यांकन करें, ताकि पैनल सही से इंस्टॉल हो सकें।
  • लाइसेंस प्राप्त इंस्टॉलर या कंपनी से इंस्टॉलेशन करवाएं।
  • स्थानीय बिजली वितरण कंपनी के नियम और दिशा-निर्देशों को समझें।

8. सोलर सिस्टम लगाने के लाभ

  • बिजली के बिल में कमी आती है और पूरी तरह से स्वतंत्र बिजली का स्रोत मिलता है।
  • बिजली कटौती के समय भी पावर सप्लाई होती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।
  • पर्यावरण के लिए अनुकूल — कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
  • लंबे समय में ROI (Return on Investment) काफी अच्छा होता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post